सेना या सुरक्षा बल का कोई जवान जब कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राण गवां देता है, तब उसके परिजनों या आश्रितों को सरकार से क्या मुआवजा मिलता है? अक्सर यह सवाल जवानों की शहादत होने पर सामने आ जाता है. यह सवाल बीते हफ्ते छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 22 जवानों के हताहत होने के बाद फिर सामने आ गया है. इस बार भी सरकार ने तमाम घोषणाएं की हैं. लेकिन ऐसे दावों की जमीनी हकीकत क्या है, खुद सरकार ने राज्य सभा में एक अतारांकित प्रश्न (संख्या-3261) के जवाब में बताई है.
सांसद अनिल देसाई ने पूछा सवाल
सांसद अनिल देसाई ने गृह मंत्री पुलवामा के शहीदों के परिजनों को दिए गए मुआवजे पर जानकारी मांगी थी. उन्होंने पूछा था कि दो साल पहले हुए पुलवामा आतंकी हमले में केंद्रीय रिजर्व बल के कितने जवान और कितने स्थानीय लोगों ने अपने प्राण गंवाए थे? क्या सरकार ने घायल या शहीद हुए लोगों के परिजनों के लिए कोई रोजगार या नगद या अन्य प्रकार से किसी मुआवजे का कोई ऐलान किया था, यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है? सांसद अनिल देसाई ने यह भी पूछा कि क्या मृतकों और घायल लोगों के साथ किए गए वादे को पूरा किया गया है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है? सांसद का आखिरी सवाल में पूछा था कि अगर (तीसरे सवाल का) जवाब न है तो राष्ट्र के लइए अपने जीवन का बलिदान देने वाले लोगों की सहायता न करने के क्या कारण हैं?
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गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने दिया जवाब
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि जम्मू कश्मीर के पुलवामा में दिनांक 14 फरवरी 2019 को आतंकवादी हमला हुआ था. इसमें सीआरपीएफ के 40 कर्मियों ने शहादत प्राप्त की थी और कोई नागरिक नहीं मारा गया था। संसद में दिए गए जवाब के मुताबिक, पुलवामा हमले के शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों के निकटतम संबंधियों या परिवारों को मुआवजे दिए गए हैं. इसमें केंद्रीय एकमुश्त अनुग्रह मुआवजे के रूप में 35 लाख रुपये, ड्यूटी वाले राज्य ने अनुग्रह राशि के रूप में पांच लाख रुपये, सीआरपीएफ के रिस्क फंड से 20 लाख रुपये, सीआरपीएफ की केंद्रीय कल्याण निधि से डेढ़ लाख रुपये, भारतीय स्टेट बैंक पैरामिलिट्री सैलरी पैकेज से 30 लाख रुपये शामिल हैं.
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